कोई नहीं


चौके सबबूझे कुछपर समझा कोई नही 

निकले सबभागे कुछपर पहुंचा कोई नही 


उपर सब, बाहर कुछ, पर भीतर कोई नहीं

मांगे सब, छीने कुछ, पर पाए कोई नहीं


रुके सब, छुपे कुछ, पर बचा कोई नहीं

चहके सब, चीखे कुछ, पर बोला कोई नहीं


डिगे सब, जागे कुछ, पर उठा कोई नहीं

बिछड़े सब, याद कुछ, पर छूटा कोई नहीं


याद सब, पास कुछ, पर साथ कोई नहीं

आए सब, रुके कुछ, पर रहा कोई नहीं    









संदर्भ

COVID की दूसरी लहर। रोज़ाना किसी परिचित का दुःखद समाचार, एक लाचारी का एहसास करता रहा। 



Header Picture by Forest Simon on Unsplash

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