ये लेख है
यह लेख है,
कविता नहीं है।
कविता प्रार्थना की भाँति होती है ,
चाहे उसमें याचना ही हो ।
कविता आह्वान की भाँति होती है ,
चाहे उसमें ग़ुस्सा ही हो ।
कविता आराधना की भाँति होती है ,
चाहे उसमें पीड़ा ही हो ।
कविता अनशन की भाँति होती है ,
चाहे उसमें शिकायत ही हो ।
प्रार्थना, आह्वान,
आराधना, अनशन,
तब सार्थक हो जाते है,
जब उस तक पहुँच जाते है
जिसको स्मरण करके उनकी रचना हुई हो ।
परंतु
यह लेख है।
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