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कोई नहीं

चौके   सब ,  बूझे   कुछ ,  पर   समझा   कोई   नही   । निकले   सब ,  भागे   कुछ ,  पर   पहुंचा   कोई   नही   । उपर सब , बाहर कुछ , पर भीतर कोई नहीं । मांगे सब , छीने कुछ , पर पाए कोई नहीं । रुके सब , छुपे कुछ , पर बचा कोई नहीं । चहके सब , चीखे कुछ , पर बोला कोई नहीं । डिगे   सब , जागे कुछ , पर उठा कोई नहीं । बिछड़े सब , याद कुछ , पर छूटा कोई नहीं । याद सब , पास कुछ , पर साथ कोई नहीं । आए सब , रुके कुछ , पर रहा कोई नहीं ।    

साल का इनाम

कई सालों में एक साल आता है हम उसको मामूली समझ बैठते है, मज़ाक बना रखते है, लेकिन वो गंभीर होता है,  वो चुपचाप दबे पैरों से लगातार चलते रहता है, हमको हसाता है, ख्वाब दिखाता है  गिराता है, उठाता है। पर क्या चाहता है, इसकी  भनक तक नहीं लगने देता। फिर एक दिन जाते जाते, जब वो सबसे ज़्यादा चंचल होता है, वो हमसे हमारा सुकून, उड़ा ले जाता है। वैसे ही जैसे, तेज़ आँधी, बरीश की बूँदो को। और हम लाचार है, हसने को, जब वो हँसता है। रोने को, जब वो गिरता है। और चुप चाप, बिना जताए, बुत की तरह, सहन करने को, जब वो अपना इनाम समझ कर, हमसे हमारा कोई माँगs लेता है । कई सालों में एक साल आता है जिसे हम मामूली समझ बैठते है।

एक धुन बज रही है मेरे गाँव में

एक धुन बज रही है मेरे गाँव में अजीब, काली सी अनजान सी धुन है  | मायूसी है, खामोशी है,  चहचहाहट के फ़ुक़्दान में एक सुनसान सी धुन है  | कल रविवार है, फिर भी आँगन खली है, गालियाँ चुप हैं, परसो इम्तहां भी नहीं | अभी तो हुई है सहर इस साल की, एक ढलती शाम सी धुन है | शीशे बरकार, नालियों में गेंद नहीं कोई भी डॉक्टर इंजीनियर पायलेट मैदान में नहीं | शांति नहीं है, सन्नाटा है, एक कोहराम सी धुन है | बड़े संभाल के रख रखा था, बरनी में बंद कर के, ऊपर के आले पे, एक तूफान को कभी बरनी टूटी और शहर गूँज उठा, एक तूफ़ान सी धुन है  | तुमने नहीं सुनी? ध्यान से सुनो काली सी  मठमैली सी, लाल यूनिफार्म में, एक हैवान सी धुन है | कल तो  रविवार है, शहर के अस्पतालों में फिर क्यों ये परेशान सी धुन  है अजीब बात है |