भ्रांति
आप सोचते है लंबी छुट्टी पर कहीं बाहर घूम आये,
कैसे भूल जाते है कि बाहर ही तो है पहले से।
आपको लगता है की अभी तो वक़्त है आपके पासआपको लगता है की अभी वक़्त है उनके पास।आपको याद बहुत आती है घर की,मगर आप जता नहीं पाते।आपका क़सूर भी तो नहीं है,काफ़ी सारी उलझनों में ख़ुद फ़से हुए है।आपको लगता है कि वक़्त धीरे धीरे तो बीत रहा है,फिर किसी दिन भरपाई हो जाएगी।आपको लगता है सब कुछ ठीक तो चल रहा है,कुछ दिनों पहले ही तो हाल चाल लिए थे।फिर किसी दिन घर से फ़ोन आता है,दिल को झिंझोड़ देने वाली आवाज़ में ।"जल्दी आजाओ"इतनी भी क्या जल्दी?अभी कल तक तो सब ठीक था।हल्का सा बुख़ार ही तो था।आप ख़ुद को बहलाने समझाने में जुट जाते हैरास्ते भर।घर पहुँचते है तो कैसे सब पानी में धूल जाता हैगलती आपकी थी, ये एहसास हो जाता है।वो आख़िरी बार जो बात हुई थी,बात ना हो पाने पर।वही बात आपके मन कोआख़िरी दम तक तकलीफ़ देगी ।और अबकी बार फ़ोन उठा करभरपाई भी नहीं हो पाएगी।यही सज़ा है,सही सज़ा है ।चंद तकिया कलाम,
और गुनगुने पानी जैसे गीतों के एहसास
बस यही साथ रहेंगे अब
और कहीं जाना भी नहीं पड़ेगा
उनका घर,
जहाँ अब सिर्फ़ तब जाओगे ,
जब आप पूरी तरह से सूख चुके होंगे,
अंदर से।
और फिर से उस गुनगुने पानी में भिगोना होगा,
अपने असंतुष्ट मन को।
जैसे तुम्हारे फ़ोन आने से
उनके मन की तृप्ति होती थी ।
इतने मुग़ालते ?
इतना ग़लत कैसे हो सकते हो ?
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