एक धुन बज रही है मेरे गाँव में अजीब, काली सी अनजान सी धुन है | मायूसी है, खामोशी है, चहचहाहट के फ़ुक़्दान में एक सुनसान सी धुन है | कल रविवार है, फिर भी आँगन खली है, गालियाँ चुप हैं, परसो इम्तहां भी नहीं | अभी तो हुई है सहर इस साल की, एक ढलती शाम सी धुन है | शीशे बरकार, नालियों में गेंद नहीं कोई भी डॉक्टर इंजीनियर पायलेट मैदान में नहीं | शांति नहीं है, सन्नाटा है, एक कोहराम सी धुन है | बड़े संभाल के रख रखा था, बरनी में बंद कर के, ऊपर के आले पे, एक तूफान को कभी बरनी टूटी और शहर गूँज उठा, एक तूफ़ान सी धुन है | तुमने नहीं सुनी? ध्यान से सुनो काली सी मठमैली सी, लाल यूनिफार्म में, एक हैवान सी धुन है | कल तो रविवार है, शहर के अस्पतालों में फिर क्यों ये परेशान सी धुन है अजीब बात है |